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Sanyukt Hindu Parivar vyavsay - संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय

संयुक्त हिंदू परिवार का अर्थ:- 


Sanyukt Hindu Parivar vyavsay kya hota hai

हिंदू लॉ के अनुसार sanyukt Hindu parivar से आशय व्यक्तियों के ऐसे समूह से हैं जो एक ही पूर्वज के वंशज हैं। इसके अंतर्गत अविवाहित स्त्रियों एवं पत्नियों को भी सम्मानित किया जाता है। संयुक्त हिंदू परिवार का संगठन निम्न दो विशेषताओं पर आधारित होता है:-

  1. सहभागिता

  2. सामान्य संपत्ति


सहभागिता:-  सहभागिता से अभिप्राय परिवार की पैतृक संपत्ति में सामूहिक स्वामी तो से होता है। SahbhaGita Kanoon द्वारा उत्पन्न होती है ना कि अनुबंध द्वारा। इसके अंतर्गत एक व्यक्ति के परिवार में जन्म लेते ही परिवारिक संपत्ति में अधिकार मिल जाता है। इसे सहभागी कहते हैं। यह सदस्य परिवार की संपत्ति के विभाजन की मांग भी कर सकता है।


सामान्य संपत्ति:-  कानून के अनुसार Hindu sanyukt parivar  को हिंदू अविभाजित परिवार के रूप में उसी समय मान्यता मिलती है जबकि परिवार के पास ऐसी संपत्ति में जिसका प्रयोग परिवार के सभी सदस्यों के कल्याण के लिए होता हो। सामान्य संपत्तियों में निम्न संपत्तियों को सम्मिलित किया जाता है:-

  1. पैतृक संपत्ति।

  2. पैतृक संपत्ति की सहायता से निर्मित संपत्ति।

  3. व्यक्तिगत संपत्ति जिसे परिवार की संपत्ति मान लिया गया है।


हिंदू विधान के संप्रदाय:- 


हिंदू लॉ के अनुसार हिंदू परिवारों के नियंत्रण से संबंधित दो प्रमुख संप्रदाय हैं:- 

  1. मिताक्षरा

  2. दायभाग


मिताक्षरा:-  यह संप्रदाय असम, बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों को छोड़कर समस्त भारत में प्रचलित है। Mitakshara  संप्रदाय के अंतर्गत पुत्र का जन्म होते ही उसे अपने पिता के साथ पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हो जाता है। वह व्यस्क होने पर परिवारिक संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकता है। इसके अंतर्गत सदस्यों का हित सदैव अनिश्चित रहता है, क्योंकि प्रत्येक जन्म एवं मृत्यु से हितों में परिवर्तन अवश्यंभावी है।


दायभाग:-  Dayabhag  संप्रदाय केवल असम, बंगाल और उड़ीसा के कुछ भागों में प्रचलित है। इसके अंतर्गत पुत्र को अपने जन्म के साथ किसी भी प्रकार की संपत्ति में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है। पैतृक संपत्ति पिता के जीवन काल में उसी के पूर्ण स्वामित्व में रहती है। पुत्र को संपत्ति में अधिकार पिता की मृत्यु के पश्चात ही प्राप्त होता है।


संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय का अर्थ:-

(Sanyukt Hindu Parivar vyavsay ka Arth)


संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय से अभिप्राय व्यवसायिक संगठन के उस प्रारूप से है जिसके अंतर्गत एक sanyukt Hindu parivar  के सभी व्यक्ति मिलकर परिवार के मुखिया या कर्ता के नियंत्रण में व्यापार चलाते है।


संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय की विशेषताएं:- 


संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय व्यवसायिक संगठन का प्राचीनतम स्वरूप है। इस व्यवसाय पर नियमन हिंदू विधान के अनुसार किया जाता है। Sanyukt Hindu Parivar vyavsay की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-


  • हिंदू लॉ के अनुसार संचालन:-  संयुक्त हिंदू परिवार के व्यवसाय का संचालन हिंदू लॉ के अनुसार किया जाता है। परिवार के सदस्यों के अधिकार एवं कर्तव्य इसी लॉ के अनुसार निर्धारित होते हैं।


  • कर्ता द्वारा प्रबंध:-  संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय का प्रबंध साधारणतया परिवार के वरिष्ठ सदस्य द्वारा किया जाता है। इसको कर्ता, मुखिया या प्रबंधक के नाम से भी जाना जाता है। परिवार के अन्य सदस्यों को व्यवसाय में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होता है। प्रत्येक‌ व्यापारिक समझौते  के लिए कर्ता की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।


  • सीमित दायित्व:-  संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय में सदस्यों का दायित्व उनकी संपत्ति में हिस्से तक ही सीमित रहता है। व्यवसायिक दायित्वों के लिए सदस्यों की व्यक्तिगत संपत्तियां नहीं ली जा सकती है। इस संबंध में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय निर्भरता में कर्ता का दायित्व असीमित होता है एवं व्यापारिक दायित्व के लिए उसकी व्यक्तिगत संपत्तियां भी दायी होती है।


  • स्थायी अस्तित्व:-  संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय का अस्तित्व भी कंपनी की तरह स्थायी होता है। सदस्यों की मृत्यु, दिवालिया या पागलपन का कोई प्रभाव व्यवसाय पर नहीं पड़ता है।


  • जन्म से सदस्यता:-  Hindu avibhajit Parivar में एक शिशु को जन्म से ही परिवार की संपत्ति में अधिकार मिल जाता है। ऐसा होने से वह स्वत: व्यवसाय का सदस्य बन जाता है।


  • केवल पुरुष सदस्य:-  संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय में पुरुष सदस्य ही सहभागी हो सकते हैं महिलाएं नहीं। लेकिन हिंदू उत्तराधिकार नियम 1956 के अनुसार पुरुष सहभागी की मृत्यु पर पुरुष उत्तराधिकारी के अभाव में स्त्री सहभागी हो सकती है।


  • पंजीकरण:-  sanyukt Hindu parivar vyavsay के लिए किसी प्रकार के पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी स्थापना के लिए किसी प्रकार की वैधानिक औपचारिकताओं को पूर्ण नहीं करना पड़ता है।


संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय के लाभ:-

( Sanyukt Hindu Parivar vyavsay ke Labh)


  • प्रारंभ करने की सरलता:-  संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय प्रारंभ करना सरल होता है क्योंकि इसके लिए किसी भी प्रकार की कोई वैधानिक औपचारिकताओं की पूर्ति नहीं करनी पड़ती है।


  • गोपनीयता:-  संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय में सभी तथ्य कर्ता तक सीमित रहते हैं। अतः प्रतियोगी व्यापारियों को व्यापार के संबंध में महत्वपूर्ण सुराग नहीं मिल पाते हैं।


  • ग्राहकों से सीधा संपर्क:-  sanyukt Hindu Parivar vyavsay का कर्ता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अपने ग्राहकों के संपर्क में आता है। अतः उसे ग्राहकों की पसंद मनोवृति एवं फैशन की जानकारी होती रहती है। इससे व्यवसाय के संबंध में नीति निर्धारण करना आसान होता है।


  • शीघ्र निर्णय:-  हिंदू अविभाजित परिवार का कर्ता व्यापारिक निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होता है। उसे निर्णय के लिए अन्य किसी व्यक्ति से सलाह लेने की आवश्यकता नहीं होती है। अतः वह शीघ्र  निर्णय ले सकता है जो कि व्यापार की सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक है।


  • प्रयत्न एवं प्रतिफल में सीधा संबंध:-  हिंदू अविभाजित परिवार के कर्ता का व्यवसाय के समस्त लाभों पर एकाधिकार होता है। इससे अधिक श्रम करने की प्रेरणा मिलती है।


  • पैतृक गुणों का लाभ:-  Hindu avibhajit parivar  पुश्त - दर पुश्त चलता रहता है एवं परिवार के सदस्य भी परिवार की प्राचीन आदर्श परंपराओं को बनाए रखते हैं। इससे पैतृक ख्याति के लाभ भी व्यवसाय को प्राप्त होते हैं।


संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय की सीमाएं:- 


संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय की सीमाएं निम्नलिखित हैं:- 


  • सीमित साधन:-  संयुक्त हिंदू परिवार के साधन सीमित होते हैं। इससे व्यवसाय की प्रतिस्पर्धा शक्ति कम होती है एवं व्यवसाय के विकास में भी यह तथ्य बाधक बनता है। सीमित साधन होने के कारण बड़े पैमाने की व्यवस्थाएं की स्थापना नहीं की जा सकती है।


  • सीमित प्रबंध चातुर्य:-  कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना ही बुद्धिमान क्यों ना हो उससे यह आशा नहीं की जा सकती कि व व्यवसाय संबंधी सभी बारीकियों से पूर्ण परिचित होगा। संयुक्त हिंदू व्यवसाय में सभी निर्णय कर्ता को लेने होते हैं। परिणाम स्वरूप कभी-कभी निर्णय व्यापार के हित में नहीं हो पाते हैं।


  • असीमित उत्तरदायित्व:-  संयुक्त हिंदू विभाजित परिवार व्यवसाय में कर्ता का उत्तरदायित्व  असीमित होता है। इसके कारण वह सभी निर्णय बहुत सोच समझ कर लेता है। परिणाम स्वरूप निर्णय लेने में अनावश्यक देरी होती है।


  • शक्ति के केंद्रीकरण से हानि:-  संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय आपसी सहयोग पर आधारित है। इसके अंतर्गत निर्णय लेने की पूरी शक्ति कर्ता के पास होती है। कभी-कभी वह इस शक्ति का दुरुपयोग करता है। इससे अन्य सदस्यों में प्रेम एवं सद्भावना का ह्रास होता है। यही कारण है कि व्यवसायिक संगठन का यह स्वरूप धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है।


  • सदस्यों के सहयोग का अभाव:-  व्यावहारिक रूप से यह देखा गया है कि परिवार के सदस्य sanyukt Hindu Parivar vyavsay की अपेक्षाकृत अपनी निजी संपत्ति में वृद्धि करने में अधिक रूचि लेते हैं इससे परिवार के सदस्यों का सहयोग नहीं मिल पाता है।


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